भारतीय सेना न सिर्फ एक भूत की सेवा ले रही है बल्कि उसे वेतन, प्रमोशन और पद की सभी सुविधाएं भी दे रही है। शायद आप इसे पढ़ते हुए थोड़ा अविश्वसनीय मुद्रा में होंगे लेकिन कुछ इंटरनेट साइटों की मानें तो यह सौ फीसदी सच है। भूत-प्रेतों की कहानियां अगर कहानियों में हों तो लोग मजे लेकर पढ़ते, देखते और सुनते हैं। सामान्य भाषा में ये कथित भूत हमारे मनोरंजन का एक बड़ा साधन हैं। पर जब-जब हकीकत में इनके अस्तित्व की बात आती है तो इन्हें झुठला दिया जाता है। हालांकि इसे पढ़कर भूतों के अस्तित्व पर एक बार आप जरूर सोच में पड़ जाएंगे।
1963 का इंडो-चाइना वार आपको पता होगा। उस युद्ध में शहीद होने वाले सिपाहियों में हरभजन सिंह भी एक थे। 1962 के डोगरा रेजिमेंट के जवान हरभजन सिंह भारत-चीन के उस युद्ध में चीन के विरुद्ध युद्ध में शामिल हुए और शहीद हो गए. कहते हैं कि शहीद होने के तीन दिनों तक उनकी लाश भारतीय आर्मी को नहीं मिली और उनके किसी साथी जवान के सपने में उन्होंने अपने मृत शरीर की जगह बताई थी। उसके बाद पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। लेकिन उसके बाद भी हरभजन सिंह ने अपनी आर्मी ड्यूटी से मुंह नहीं मोड़ा और बाबा बन गए, कैसे? यह भी एक मनोरंजक कहानी है।
कहते हैं कि भारत-चीन के उस युद्ध के विषय में भी हरभजन सिंह ने अपनी साथी जवानों को पहले ही बता दिया था। शहादत के बाद युद्ध इंडो-चाइना युद्ध समाप्ति के बाद ऐसा कहा जाता है कि अपने किसी साथी जवान के सपने में आकर हरभजन सिंह ने अपनी समाधि पर एक मंदिर बनाने की बात कही। उनके कहे अनुसार हरभजन सिंह की समाधि पर एक मंदिर बनाया गया। तब से हरभजन सिंह भारतीय सेना की इस रेजिमेंट के लिए बाबा बन गए। यहां की रेजिमेंट के लिए हरभजन सिंह उर्फ बाबा आज भी सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और भारतीय सेना वेतन समेत सेना में रहते हुए मिलने वाली सभी सुविधाएं बाबा को दे रही है जिसे सुनकर कोई भी अपने दांतों तले अंगुली दबा ले।
पूर्वी सिक्किम के नाथू ला दर्रे में हरभजन सिंह उर्फ बाबा की सेवाएं आज भी भारतीय आर्मी ले रही है और स्वभाव से कड़क और अनुशासित माने जाने वाले बाबा मरने के बाद से आज तक अपनी सेवाएं भारतीय आर्मी को पूरी ईमानदारी से दे रहे हैं। कहते हैं नाथू ला दर्रे में बाबा के नाम पर एक कमरा आज भी सुसज्जित है। यह कमरा अन्य सामान्य कमरों की तरह प्रतिदिन साफ किया जाता है, बिस्तर लगाया जाता है, हरभजन सिंह की सेना की वर्दी और उनके जूते रखे जाते हैं। कहते हैं रोज सुबह इन जूतों में कीचड़ के निशान पाए जाते हैं. माना जाता है कि बाबा सेना की अपनी पूरी जिम्मेदरी निभाते हैं. इसलिए भारतीय सेना इन्हें नियमित वेतन भी देती है, सैनिक के रूप में काम करते हुए अन्य फौजियों की तरह इनका पद भी मान्य है और समय-समय पर इन्हें प्रमोशन भी दिया जाता है. यहां तक कि ये सालाना नियत अपनी 2 महीने की छुट्टियां भी लेते हैं। इनके वेतन का एक हिस्सा जालंधर में रह रही इनकी मां के पास भेजा जाता है और इनकी छुट्टियों के लिए बाकायदा इनका सामान प्रथम श्रेणी के ट्रेन रिजर्वेशन के द्वारा इनके घर भेजा जाता है. किसी हवलदार के हाथों इनकी वर्दी समेत अन्य सामान इनके घर भेजा जाता है और छुट्टियां समाप्त होने पर उसी प्रकार उन्हें वापस भी लाया जाता है। कहते हैं कि बाबा की मान्यता सिर्फ भारतीय सेना में नहीं बल्कि बॉर्डर पर तैनात चीनी सेना में भी है। जब भी नाथू ला पोस्ट में चीनी-भारतीय सेना की फ्लैग मीटिंग होती है तो चीनी सेना एक कुर्सी हरभजन सिंह उर्फ बाबा के लिए भी लगाती है। यह एक अविश्वसनीय और अजीब सी लगने वाली कहानी अवश्य है लेकिन सच है। अभी हाल ही में जालंधर के ही किसी जवान ने एक मरे हुए जवान की पूजा करने और उसे सभी सुविधाएं देने और अंधविश्वास को बढ़ावा देने के लिए भारतीय सेना और डिफेंस मिनिस्ट्री पर कोर्ट में केस किया है। अब देखते हैं कि कोर्ट इस भूत के अस्तित्व पर क्या फैसला देता है।
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